September 27, 2011

चला जा रहा हूँ ....


अन्जाने रास्तों पे चला जा रहा हूँ ... 
गमों को भुलाने चला जा रहा हूँ ......

इन्ही रास्तों पे, कहीं न कहीं तो, मिलेगा मुझे वो ख़ुशी का खजाना, 
बस यही ख्वाब लेके चला जा रहा हूँ ....

गमों के साए में, बस इन्ही ख्वाबों को दिल में संजोये, 
गमों को भुलाने चला जा रहा हूँ ....

हसरतें बहुत सी हैं, उन हसरतों को पानें की चाहतों को दिल में दबाये, 
इन अनजाने रास्तों पे चला जा रहा हूँ....

घना है अँधेरा, घनेरे हैं बादल, घने बादलों की बारिश में भीगे, 
गमों को भुलाने चला जा रहा हूँ ...

कभी तो मिलेगी मुझे मेरी खुशियाँ, कभी तो मिलेगा वो खुशियों का सागर, 
समंदर की लहरों के हसीं ख्वाबों में खोये, 
गमों को डुबोने चला जा रहा हूँ ...

सुना है समय का चलता है चक्र, ख़ुशी और गम दोनों की आती है बारी... 
इसी समय-चक्र के भरोसे चला जा रहा हूँ ....

गमों को भुलाने चला जा रहा हूँ, अन्जाने रास्तों पे चला जा रहा हूँ ...


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